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ओ इन्सान को बाँटनेवालो……

मेरी आवाज सुनो
मेरी आवाज सुनो
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unityओ इन्सान को बाँटनेवालो, क़ुदरत को तो बाँट के देख़ो।
ओ भगवान को बाँटनेवालो, क़ुदरत को तो बाँट के देख़ो।

कोई कहे रंग लाल है मेरा, कोई कहे हरियाला मेरा।
रंग से ज़ुदा हुए तुम कैसे ओ रंगों को बाँटनेवालो? ओ इन्सान को….

आसमाँन की लाली बाँटो, पत्तों की हरियाली बाँटो,
रंग सुनहरा सुरज का और चंदा का रुपहरी बाँटो।
मेघधनुष के सात रंग को बाँट सको तो बाँट के देखो। ओ इन्सान को….

आँधी आइ धूल उठी जब, उससे पूछ लिया जो मैने।
कौन देश क्या धर्म तुम्हारा, वो बोली मेरा जग सारा।
मुझ को हवा ले जाये जीधर भी में उस रूख़ पे उडके जाउं।
ना कोइ मज़हब टोके मुझको, ना कोइ सीमा रोके मुझको।
मिट्टी के इस बोल को बाँटो ओ सरहद को बाँटनेवालो… ओ इन्सान को….

नदिया अपने सूर में बहती, गाती और इठ्लाती चलदी।
मैने पूछा उस नदिया से कौन देश है चली किधर तू?
हसती गाती नदिया बोली, राह मिले मैं बहती जाउँ।
ना कोइ मज़हब टोके मुझको, ना कोइ सीमा रोके मुझको।
नदिया के पानी को बाँटो, ओ मज़हब को बाँटनेवालो। ओ इन्सान को….

फ़ुल ख़िला था इस धरती पर, महेक चली जो हवा के रुख़ पर।
मैने पूछा उस ख़ुश्बु से चली कहाँ खुश्बु फ़ैलाकर।
ख़ुश्बु बोली कर्म है मेरा, दुनिया में ख़ुशबु फ़ैलाना।
ना कोइ मज़हब टोके मुझको, ना कोइ सीमा रोके मुझको।
फ़ुलों की ख़ुश्बु को बाँटो, ओ गुलशन को बाँटनेवालो। ओ इन्सान को….

उडते पँछी से जो मैने पूछ लिया जो एक सवाल।
कौन देश क्या धर्म तुम्हारा, हँस के वो ऐसे गया टाल!
पँछी बोला सारी धरती, हमको तो लगती है अच्छी।
ना कोइ मज़हब टोके मुझको, ना कोइ सीमा रोके मुझको।
आसमाँन को बाँट के देख़ो, उँचनीच को बाँटनेवालो। ओ इन्सान को….

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