मेरी आवाज सुनो
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घर में जो हँसती खेलती आती है बेटियाँ।
लक्ष्मी को साथ ले के ही आती है बेटियाँ।
आने से उनके घर हमें लगता है स्वर्ग-सा।
संसार में मध घोलती जाती है बेटियाँ।
त्यौहार हो या पर्व हो आता निखार जो।
रंगों से गीतमाला से लाती है बेटियाँ
बचपन से जो जवानी तक कदम बढे चले
माँ बाप का हर वादा निभाती है बेटियाँ।
बाबुल के घर से चल पडी ससुराल कि तरफ।
छुपछुप के रोती हमको रुलाती है बेटियाँ।
थक जाये गर जो माँ कभी दिनभर के काम से।
माँ की बगल में सो के सुलाती है बेटियाँ।
माँ-बाप को बुख़ार जो आ जाये एक दिन
गीतों में अपना प्यार सुनाती है बेटीयाँ।
ग़र बेटियाँ “महान” है रज़िया की नज़र में।
फ़िर कोख में क्यों मार दी जाती है बेटियाँ।
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