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…झुमती ..गाती और गुनगुनाती गज़ल..

मेरी आवाज सुनो
मेरी आवाज सुनो
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झुमती गाती और गुनगुनाती गज़ल,

गीत कोइ सुहाने सुनाती गज़ल।

ज़िंदगी से हमें है मिलाती गज़ल,

उसके अशआर में एक इनाम है,

उसके हर शेर में एक पैगाम है।

सबको हर मोड पे ले के जाती गज़ल।

उसको ख़िलवत मिले या मिले अंजुमन।

उसको ख़िरमन मिले या मिले फ़िर चमन,

वो बहारों को फ़िर है ख़िलाती गज़ल।

वो इबारत कभी, वो इशारत कभी।

वो शरारत कभी , वो करामत कभी।

हर तरहाँ के समाँ में समाती गज़ल

वो न मोहताज है, वो न मग़रूर है।

वो तो हर ग़म-खुशी से ही भरपूर है।

हर मिज़ाजे सुख़न को जगाती गज़ल।

वो महोब्बत के प्यारों की है आरज़ु।

प्यार के दो दिवानों की है जुस्तजु।

हो विसाले मोहबबत पिलाती गज़ल।

वो कभी पासबाँ, वो कभी राजदाँ।

उसके पहेलु में छाया है सारा जहाँ।

लोरियों में भी आके सुनाती गज़ल।

वो कभी ग़मज़दा वो कभी है ख़फा।

वक़्त के मोड पर वो बदलती अदा।

कुछ तरानों से हर ग़म भुलाती गज़ल।

वो तो ख़ुद प्यास है फ़िर भी वो आस है।

प्यासी धरती पे मानो वो बरसात है।

अपनी बुंदोँ से शीद्दत बुझाती गज़ल।

उसमें आवाज़ है उसमें अंदाज़ है।

इसलिये तो दीवानी हुइ “राज़” है।

जब वो गाती है तब मुस्कुराती गज़ल।

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