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ये नाम बचपन में कहीं सुना था।
….पर ये क्या होता है पता नहिं था। हमारा छोटा-सा गाँव था। पाठशाला से कभी कभी हमें पर्यटन को नीलकंठ महादेव ले
जाया करते। वो जगह गाँव से 2 किमी की दूरी पर थी।
हम सब लडकीयाँ एक एक कटोरी दाल और चावल ले जाते थे। वहाँ गुजराती खीचडी और कढी का
भोजन करते। खूब खेलते और शाम को घर आ जाया करते। वो दिनों कि याद अभी भी मुझे बचपन ढूंढने पर मजबूर कर देती है।
अहमदाबाद से 47 कि.मी दूरी पर हमारा गाँव था।
कर्फ़्यु होता तो स्कुल-क़ालेज बंद रहते। नौकरी पेशा लोग भी घर ही रहते ऐसा
कर्फ़्यु लग जाये तो हमारी भी स्कुल में छुट्टी हो जाये। बाबा भी घर पर रहें।
कितना मज़ा आ जाये?
कर्फ़्यु शब्द का मतलब पता नहिं था। हर राष्ट्रिय त्यौहार पर हमें अम्मी पाठशाला ज़रुर भेजती। दिपावली और इद हम सब सहेलियाँ
कर्फ़्यु का मतलब नहिं बताया।
कर्फ़्यु का मतलब समज़ में आया।
पर कभी इस बला का अनुभव नहिं था। वो अनुभव 2002 के गोधराकांड और उसके बाद के दंगों में जाना।
मेरी एक तहसील में नौकरी थी। अस्पताल में आये दिन जली हुई लाशें पोस्टमोर्टम के लिये आती रहतींथीं। लाशों कि पहचान धूंएं में ख़ो जाया करती थी।
कर्फ़्यु लगा था।
हाँ कर्फ़्यु उस बला का नाम है जो लोगों को लोगों से अलग कर देती हैं।
“कर्फ़्यु” का मतलब
क्यों समझा नहिं पा रही थी।
कुछ दिनों के बाद सिर्फ महिला और बच्चों के लिये कर्फ़्यु में छूट दी गई। वो भी सिर्फ़ दोपहर 4 बजे से 6 बजे तक के लिये।
मैं बाज़ार में कुछ महिलाओं के साथ सब्ज़ी और सौदा लेने निकल पडी। सब्ज़ी के दाम आसमां को छू रहेथे। कालाबाज़ारी कर्फ़्यु का फ़ायदा उठा रहेथे।
सब्ज़ी लेकर किराने की दुकान पर जा पहुंची। लं……बी कतार थी। शायद 70-से 80 महिलाएं कतार में ख़डी थीं। मुझे लगा कि दो घंटों में तो सब कोई
ख़रीद नहिं पायेगा। फ़िरभी कतार में ख़डी हो गई।
मुझसे दो महिलाओं के आगे ख़डी एक महिला पर म्रेरी नजर जमकर रह गई। आगे कि दो महिलाएं अपनी नाक पर रुमाल दबाये उसकी बातें कर रहींथीं।
मैंने उस महिला को देखा फ़टी-पुरानी साडी में ख़डी महिला ख़ाली डबबा वाली लग रही थी। शायद 35 की उम्र थी उसकी। एक हाथ में थैली थी दुसरे हाथ में
500 मिली. की काच की बोटल थी। जिसको इलेक्ट्रीक के वायर से बांधकर पकडने का छेडा बना हुआ था।
कुछ कुछ महिलाएं अपना सौदा लेकर निकलती चलीं। जैसे पूरा साल भर का ख़रीदने आईं थीं।
कतार धीरे धीरे कम होती जा रही थी। हम बस अब दुकान के कुछ ही दूर थे। इतनें में उस ग़रीब महिला जमीन पर कुछ ढूंढने लगी। वो आगे नहिं बढ रही
कर्फ़्यु मुक्ति का 10 मिनिट ही बचे हैं। महिला तो बस ढूंढती ही रही।
मैंने पूछा क्या ढूंढ रही हो बहन?
उसने कहा” 5रुपये का सिक्का!!!!!
मैंने कहा देखो वक़्त बीता जा रहा है लो मै तुम्हें देती हुं। सौदा लेलो।
उसने ख़िचकिचाते हुए मुझ से पैसे ले लिये। और सौदा लेकर निकल चली।
मेरा नंबर आ गया था। पुलिस की गाडी एलान कर रही थी दुकानें बंद करो 6 बजनेवाले हैं।
मैं अपना सौदा लेकर निकली तो देखा…….
अभी भी वो ग़रीब महिला अपने पैरों से मिट्टी में कुछ ढूंढने कि कोशिश कर रही थी।
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