मेरी आवाज सुनो
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ऊंची-ऊंची दिवारों से लगकर …
तोतींग दरवाज़े के भीतर से गुज़रकर,
खुले मेदान से होते हुए…
कारागार की बंदीवानों का उपचार करते-करते,
यहाँ की “बंदीनीओं”की
समय के साथ ….
संघर्षमय जीवन बीताने की प्रेरणा लेकर….
एक नारी ख़ुद “ बंदीनी” बन गई …..
क्यों?
जवाब जानना चाहेंगे आप?
….तो….. जवाब के लिये आपको कल तक इंतेज़ार करना होगा!!!!
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